सिन्धुप्रिया के मन में
कहीं कोई कामना फँसी है,
किसी आदिम रम्यता का
कोई व्यापक सम्मोहन ,
कर्षित कर रहा है उसे
नहीं तो यों-
स्तंभित
एक रूपरचना
एक चित्र नहीं होती नदी !
कहीं कुछ पा लेने की
हर्ष गद-गद स्वीकृति ,
कोई तन्मय स्वर-लिपि है -
नदी की देह-वीणा में-
नहीं तो यों गीत नहीं होती नदी !
किसी आकुल शब्द-रचना का
कोई अप्रकट अनुष्टुप
उद्वेलित कर रहा है -
नदी का मन ,
नहीं तो यों छन्द नहीं होती नदी !
कहीं कुछ है
अनुभूत
सहज अभिव्यक्ति-काम्य
उमड़ता हुआ
नहीं तो यों ,
एक असमाप्त यात्रा
एक अनवरत शब्द नहीं होती नदी !
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