Saturday, January 29, 2011

वन-निष्ठा




मैंने नहीं सोचा था  
कि मेरे लिए 
मेरी वन-निष्ठा का 
यह परिणाम होगा 
वन-महोत्सव पर 
तालियाँ बजाकर अभी मैं उठा ही था 
कि तुमने मुझे भी 
एक वृक्ष की तरह रोप दिया !

तालियों की गड़- गड़ाहट ,
अभी थमी भी न थी ,
कि वृक्ष सहसा बहुत ऊँचे हो गए,
और लताओं ने ,
एक गहन कान्तार का सृजन किया !
तुम्हारे शब्दों का जादू ,
मैं जानता तो था ,
पर यह नहीं सोचा था 
कि मेरे तुम्हारे बीच 
वन सहसा इतना घना हो जायेगा 
तुम पास होकर भी इतनी दूर हो जाओगे !

कुछ बड़े सही ,
पर तुम भी हमारी तरह ,
वृक्ष हो जाओगे !

अब यहाँ,
इस गहन वन में 
हमारे पीछे छुपी
हिंस्र हुंकारे हैं , आक्रामक गुर्राहटें  हैं ,
लपलपाती जीभें हैं -
इन्होंने  हमें नहीं डसा !

अभी-अभी ये अजगर
हमारे बीच से निकल कर गया ,
इसने हमें नहीं कसा,
तो अपने वन होने का एहसास
और घना हो गया !

मुझे तुम्हारे शब्दों के जादू पर 
विश्वास तो था ,
पर मैंने यह नहीं सोचा था ,
कि हम इतनी जल्दी 
सहसा वन हो जायेंगे !

No comments:

Post a Comment