Friday, January 28, 2011

अनुभूत



वह सब कुछ जो घटा,
वह सब कुछ जो दिखा 
और वह सब कुछ 
जो  अनुभव में आया 
शब्द नहीं हुआ
मेरे शब्दकृत से
मेरा निश्शब्द -कृत  था 
कहीं ज्यादा बड़ा,
कहीं ज्यादा प्रवहमान ,
कहीं ज्यादा ज्वलंत -
जिसे शब्द सह नहीं सका
और जिसे 
कवि होकर भी
मैं  कह  नहीं सका !
अनुभूत को वचन देना 
साधना  है,
तपस्या है,
परीक्षा है,
जो बहुत कड़ी है,
आदमी की अस्मिता,
भाषा से कहीं ज्यादा-
बड़ी है ! 

No comments:

Post a Comment