Tuesday, June 29, 2010

गांठें

वे गांठें,
जो मैंने लगाई थीं ,
मुझसे बड़ी हो गयी हैं !
सब,
मेरे ही खिलाफ 
तन कर खड़ी हो गयी हैं !
मैं इन्हें खोलने चलता हूँ ,
तो ये बोलती हैं !
बंधे ही बंधे 
बहुत कुछ खोलती हैं !
मैं इनकी आवाज़ से
 डरता हूँ !
मैं जानता हूँ,
कि इससे
 मैं कुछ घटता हूँ !
 लेकिन मैं
 इन्हें बिना खोले
 जी नहीं सकता 
और गांठें हैं 
कि बिना बोले 
खुल नहीं सकतीं !

Thursday, June 10, 2010

युद्ध-मुद्रा

मैं भीष्म नहीं था 
देवव्रत था ,
पर पिता की शांतनु-कामना ने ,
मुझे भीष्म बना दिया ,
मैं मर्यादा-पुरुषोत्तम होने भी
नहीं आया था ,
पर दशरथ पिता का,
विरथ पुत्र मैं ,
वन-वन डोलता 
अपनी माता का हठ भार ढोता रहा !
कौन चाहेगा पिता से बैर करना ,
पर मेरी पदच्युत माता के 
एकांत वनाश्रम को ,
-रौंदता हुआ आया ,
जब किसी सामंत का घोड़ा
मैं विवश था ,
मैंने लवकुश होकर 
उस अहंकार को तोड़ा
और आज जो मैं, 
इस समूची पृथ्वी का युद्ध-मुद्रा  में 
भेदन कर रहा हूँ 
इसमें मेरा दोष नहीं है 
मैंने तो गर्भ  में ही एक युद्ध जिया 
ओ पिता ! 
तुमनें मुझे 
जन्म से पहले ही 
चक्रव्यूह  क्यों दिया ?        

Wednesday, June 9, 2010

जिंदगी

जिंदगी इतिहास के मारे हुए 
आदमी की व्यथा है ,
ऊँचे होते हुए पर्वतों
और गहरे होते हुए 
सागरों की कथा है !

Sunday, June 6, 2010

नन्ही चिड़िया



एक नन्ही चिड़िया,
आँगन में फुदकती है ,
नाचती है ,
गीत गाती है ,
चिड़िया की लिए -
आँगन जरूरी नहीं है ,
आँगन के लिए -
चिड़िया जरूरी है  !