Monday, June 20, 2011

ज़िंदगी : गणित की पुस्तक




ज़िंदगी 
गणित की एक पुस्तक
की तरह है ,
इसमें सवालों पर सवाल हैं 
और प्रश्नावलियों पर 
प्रश्नावलियाँ हैं ,
जब मैं जोड़ने लगा
तो लगा कि मेरे पास 
बहुत हो गया है ,
जब घटाने लगा
तो लगा कि सारे का सारा 
खो गया है ,
जब मैनें गुणा किया 
तो अंकों के ढेर लगने लगे ,
पर जब भाग किया 
तो माथे पर हाथ धरने लगे,
दर-असल
हमने ज़िंदगी को 
लघुत्तम की तरह लगाया 
और महत्तम की तरह दर्शाया !
इसी बीच ज़िंदगी के सरे गुणनखंड
एक-दूसरे से कट गए 
और हुआ यह 
कि उत्तरमाला के 
सारे पन्ने फट गए !

मेघ हिरना




बादल उठे
राग गर्भित , ऊर्ध्वमुख 
किन्नर देश में -
प्रीति-पर्वत पर उछलते-कूदते ,
कभी हँसते खिल-खिलाते ,
कभी रुक कर सिहरते,
दृग मूँदते,
हिम मंडित शिखर पर 
कभी जमते,
कभी क्रोधित गड़-गड़ाते,
घाटियों में उतर जाते,
बरसते,
नदी बनकर,
कभी झरने की तरह झरना ,
मेघ हिरना ,
अरे ओ , मेघ हिरना !