Wednesday, December 22, 2010

गंगा



माँ,
तुम्हारे तट तक आकर भी
मैं यज्ञ  के पश्चात का
अपना पवित्र स्नान स्थगित करता हूँ ,
क्योकि 
मेरे यज्ञ -अश्व की वल्गाएँ थामे 
मेरे ही पुत्र 
मेरे विरुद्ध खड़े हैं ,
मैं इनसे अश्व नहीं माँगूगा 
न युद्ध करूँगा 
इन्हें देता हूँ उत्तराधिकार में 
यह अधूरा अश्व-मेध ,
अनुत्तरित प्रश्नों का 
यह समूचा आकाश !
माँ ,
तब तक तुम बराबर बहना
अनवरत रहना 
जब तक वाण-फलकों पर सोये 
तुम्हारे पुत्र 
उत्तरायण सूर्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं 
और मैं व्यग्र हूँ-
उस दिन के लिए 
जब विश्व-विजयी अश्व के पीछे 
मेरे वंशज 
अनुत्तरित  प्रश्नों का आकाश 
बांध लायेंगे 
तब तक एक -एक दिन 
समिधा की तरह चुनूँगा  
और जीवन
यज्ञ की तरह जियूँगा 
माँ ,
मैं उस दिन के लिए 
अपना अवभृथ स्थगित करता हूँ !

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