क्षत-विक्षत पड़े थे नारे
फिर उगनें लगे हैं ,
टूट कर खंडित हो गए थे जुलूस
फिर उठने लगे हैं ,
ऐसे में अच्छा हुआ
- मेरे अभिमन्यु ,
कि तुम पैदा हो गए ,
मैं तुम्हारा पिता
तुम्हारी अधूरी शिक्षा के लिए
उत्तरदायी हूँ ,
इसलिए आज
अपने सारे अधिकार
विसर्जित करता हूँ
और यह चक्रव्यूह -सा देश
तुम्हें समर्पित करता हूँ !
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