शब्दों की सारी पुरानी कब्रें
खोल दी जाएँ
बूढ़ी ईंटों पर बैठे
इतिहास के
सारे पुराने अर्थों का
आज निर्णय हो जाए
हैसियत के मुताबिक
जन्नत और दोज़ख
बख्श दी जाय,
क्योंकि
ज़िंदा सन्दर्भों को
मृत कब्रों में
दबाया नहीं जा सकता
और अनिर्णीत इतिहास को
सडकों पर बहुत दिन
घूमने नहीं दिया जा सकता !
No comments:
Post a Comment