बस थोड़ी देर
मुझसे उत्तराधिकार न माँगो
कुछ ही क्षणों में
मेरी खुली हुई बाहें
अनुत्तरित प्रश्नों का आकाश
बाँध लेंगी
अभी तो कंठ में अटके
पाषण से टकरा कर
अन्दर की प्राणवायु
अन्दर ही घुट रही है !
नूतन सृष्टि के लायक
रक्त निर्विष कहाँ हुआ है !
अभी तो अधबनें वृत्तों
और टूटती परिधियों के
सारे बिंदु चोरी हो जायेंगे
बस थोड़ी देर मुझसे
और उत्तराधिकार न माँगो !
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