माँ,
तुम्हारे तट तक आकर भी
मैं यज्ञ के पश्चात का
अपना पवित्र स्नान स्थगित करता हूँ ,
क्योकि
मेरे यज्ञ -अश्व की वल्गाएँ थामे
मेरे ही पुत्र
मेरे विरुद्ध खड़े हैं ,
मैं इनसे अश्व नहीं माँगूगा
न युद्ध करूँगा
इन्हें देता हूँ उत्तराधिकार में
यह अधूरा अश्व-मेध ,
अनुत्तरित प्रश्नों का
यह समूचा आकाश !
माँ ,
तब तक तुम बराबर बहना
अनवरत रहना
जब तक वाण-फलकों पर सोये
तुम्हारे पुत्र
उत्तरायण सूर्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं
और मैं व्यग्र हूँ-
उस दिन के लिए
जब विश्व-विजयी अश्व के पीछे
मेरे वंशज
अनुत्तरित प्रश्नों का आकाश
बांध लायेंगे
तब तक एक -एक दिन
समिधा की तरह चुनूँगा
और जीवन
यज्ञ की तरह जियूँगा
माँ ,
मैं उस दिन के लिए
अपना अवभृथ स्थगित करता हूँ !
No comments:
Post a Comment