Thursday, June 10, 2010

युद्ध-मुद्रा

मैं भीष्म नहीं था 
देवव्रत था ,
पर पिता की शांतनु-कामना ने ,
मुझे भीष्म बना दिया ,
मैं मर्यादा-पुरुषोत्तम होने भी
नहीं आया था ,
पर दशरथ पिता का,
विरथ पुत्र मैं ,
वन-वन डोलता 
अपनी माता का हठ भार ढोता रहा !
कौन चाहेगा पिता से बैर करना ,
पर मेरी पदच्युत माता के 
एकांत वनाश्रम को ,
-रौंदता हुआ आया ,
जब किसी सामंत का घोड़ा
मैं विवश था ,
मैंने लवकुश होकर 
उस अहंकार को तोड़ा
और आज जो मैं, 
इस समूची पृथ्वी का युद्ध-मुद्रा  में 
भेदन कर रहा हूँ 
इसमें मेरा दोष नहीं है 
मैंने तो गर्भ  में ही एक युद्ध जिया 
ओ पिता ! 
तुमनें मुझे 
जन्म से पहले ही 
चक्रव्यूह  क्यों दिया ?        

1 comment:

  1. हिन्दी साहित्य की अद्वितीय रचना , जो समाज के वर्त्तमान परिवेश को भी चित्रित करती है ।

    ReplyDelete